मटमैला आसमान (पर्यावरण और शहर)
मटमैला आसमान
ओफ्फो आज फिर बाहर घना कोहरा है, यार ये दिल्ली की सर्दी...... और उस पर रोज सुबह का 35/40 किलोमीटर का सफर, आदमी तो 40 की उमर में ही बूढ़ा हो जाए। और ट्रैफिक लगता है दुनिया भर के लोगों को मरने के लिए यही एक शहर मिला था.... चाय पीते पीते रोशन खिड़की से झांकते हुए मन ही मन बडबडा रहा था।
किन ख्यालों में खो गए जनाब, जल्दी से चाय खत्म कर के अपने लाडले को स्कूल छोड़ के आइए, कहीं आप के चक्कर में स्कूल का गेट ही ना बंद हो जाए, सुरभि की तल्ख आवाज ने उसका ध्यान वर्तमान में लाकर खड़ा कर दिया।
हां.... जा रहा हूं यार, दो मिनट शांति से चाय पी लेने दो, सुबह सुबह शुरू हो जाती हो, रोशन ना चाहते हुए भी बोल पड़ा, सारा दिन ऑफिस की खिचखिच और घर आओ तो मैडम की सुनो, अपनी तो जिंदगी ही सुनने के लिए हो गई है।
हां हां.... मैं ही परेशान करती हूं ना तुमको, मैने कहा था करो मुझ से शादी, तुम ही रात दिन लट्टू की तरह डोलते थे आगे पीछे, तब मेरी बातों से फूल झरते थे और अब देखो मेरा बोलना ही नहीं सुहाता जनाब को, सुरभि झल्लाते हुए बोली।
अरव बेटा जल्दी हाथ मुंह धोकर यूनिफॉर्म पहन लो, आज वैसे भी सर्दी ज्यादा है इसलिए नहाना नहीं, वैसे ही तुमको देखो कितनी खांसी हो रही है, सुबह उठ कर पफ लिया था ना तुमने, अगर नहीं लिया है तो जल्दी से ले लो, डॉक्टर अंकल ने कहा है ना पॉल्यूशन बढ़ गया है और इस मौसम में तुमको अस्थमा की शिकायत बढ़ ही जाती है, सुरभि किचन का काम निबटाते हुए यंत्रवत बोलती जा रही थी।
थोड़ी देर में रोशन अपने 10 साल के बेटे को स्कूल छोड़ने के लिए कार निकाल कर चल पड़ा। घर से स्कूल की दूरी मात्र 3.5 किलोमीटर, और सफर का समय करीब करीब 25 से 30 मिनट।
जी हां ये ही सच्चाई आजकल हर छोटे बड़े शहर की है, हर तरफ आदमी ही आदमी, गाड़ियां, कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल, बस, ट्रक, टेंपो, इत्यादि और दिल्ली जैसे महानगर की तो आप बात ही मत पूछो।
हर छोटी बड़ी कॉलोनी में यही सब दिखाई देता है। सड़क के दोनो तरफ आधी सड़क घेर कर खड़ी गाडियां, यहां तक कि बच्चों के खेलने के पार्क भी बहुत सी जगह गाड़ियों को खड़ी करने के काम आते हैं। हों भी क्यों न हर रोज दिल्ली में करीब 1000 से 1200 नए वाहन सड़कों पर उतारे जाते हैं। 2020 में दिल्ली एनसीआर में करीब 12 मिलियन (1,20,000,00) वाहन थे।
देश की सबसे चौड़ी और भव्य सड़कों के बावजूद आपको जगह जगह ट्रैफिक जाम मिलना लगभग तय है।
वाहनों के धुएं से जहां एक ओर वातावरण में प्रदूषण फैलता है, वहीं उनके द्वारा उत्सर्जित कर्कश ध्वनि से भी ध्वनि प्रदूषण होता है।
इन सब की वजह से लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य पर तो बुरा असर पड़ता ही है जो बहुत से रोगों का मूल कारक है, साथ साथ लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका बहुत खराब असर पड़ता है, जिसकी वजह से अवसाद, चिड़चिड़ापन, रक्तचाप और हृदय रोग जैसे भयंकर रोग लोगों को घेर लेते हैं।
दिनो दिन बढ़ती जनसंख्या संसाधनों पर अत्यधिक बोझ डालती है। बिजली, पानी, आवास, खान पान और स्वच्छता पर इसका बहुत प्रतिकूल असर पड़ता है।
कहीं न कहीं मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, और बढ़ते दाम भी इस सब का नतीजा है।
बड़े शहरों की चमक दमक हर रोज गांव से हजारों लोगों को शहर आने के लिए ललचाती है। गांव के स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण को छोड़ कर अच्छी नौकरी या अच्छे जीवन स्तर के लिए लोग लालचवश शहरों की तरफ पलायन तो करते हैं पर शहर आकर उनको नसीब होती हैं गंदी बस्तियों, कूड़े के ढेर, अनगिनत बीमारियां और एक बदतर जीवन।
दिल्ली में रहने वाला हर इंसान रोज करीब 10 सिगरेट के बराबर का धुआं न चाहते हुए भी निगल जाता है।
जिसकी वजह से आज बहुत से बच्चे श्वास संबंधी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
वातावरण के प्रदूषण का दुष्प्रभाव एक ही जगह सीमित नहीं है, इसके और भी बहुत से आयाम हैं जैसे
गाड़ियों, फैक्ट्रियों और जेनरेटर से पैदा हुआ धुआं और तेल इत्यादि हवा के साथ साथ जमीन और पानी को भी प्रदूषित करता है। जिसका सीधा असर सभी पेड़ पौधों और जीव जंतुओं पर पड़ता है।
वैज्ञानिकों ने पाया है बहुत सी जगहों का पानी पीने लायक ही नहीं बचा है, उसमे सीसा, पारा जैसे बहुत से घातक द्रव्यों की मात्रा सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक हो चुकी है। जिसकी वजह से तरह तरह के हड्डी, त्वचा रोग और कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियां पनप रही हैं।
ग्लोबल वार्मिंग या फिर ग्रीन हाउस गैसों का विस्तार भी बढ़ रहा है, हमारी पृथ्वी का औसत तापमान हर वर्ष करीब 1/1.5 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, मौसमी चक्र बिगड़ता जा रहा है, अनावृष्ठि और अतिवृष्टि हो रही है। कई स्थानों पर सूखा तो कहीं अधिक बाढ़ आ रही है। समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है और पीने का पानी कम होता जा रहा है। आने वाले कुछ समय में पीने के पानी का संकट एक विकराल समस्या का रूप लेने को तैयार है।
वक्त आ गया है कि हम सावधान हो जाएं और अभी से पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में कदम उठाना शुरू कर दें
प्रकृति का जरूरत से ज्यादा दोहन न करें और प्रकृति को अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए संभाल लें।
कुछ उपाय तो हम आज क्या अभी से ही कर सकते हैं।
संसाधनों का उचित इस्तेमाल करें। पानी, भोजन जैसे अमूल्य संसाधनों को व्यर्थ न जाने दें।
निजी वाहनों का इस्तेमाल कम से कम करें, हो सके तो मेट्रो जैसे परिवहन के साधनों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें।
अधिक से अधिक वृक्षों का रोपण करके एक बार फिर से दुनिया के घटते वनों और हरियाली को सुनिश्चित करें।
कृषि के नए और प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल करें ताकि रसायनिक खाद का कम से कम उपयोग हो, साथ ही साथ किसानों को उत्साहित करें कि वो पराली जलाने जैसे पुराने तरीकों को त्याग सकें।
बिजली उत्पादन के लिए सौर और पवन जैसे प्रदूषण रहित तरीकों का इस्तेमाल अधिक से अधिक करें।
रैन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा दें ताकि भूमि का जलस्तर बढ़ाया जा सके।
औद्योगिक प्रदूषण को परिष्कृत करने के तरीकों को अपनाया जाय।
अपने निजी वाहनों का रख रखाव अच्छे से रखें ताकि वो प्रदूषण कम से कम फैलाएं।
अपनी नदियों इत्यादि जल स्त्रोतों का सरंक्षण करें उन्हें प्रदूषण से बचाएं।
ये सारे ही काम बहुत मुश्किल तो नहीं हैं ना, चाहें तो हम सब कर सकते हैं।
बस जरूरत है जागरूक होकर छोटा ही सही अपना योगदान दें, और आने वाली पीढ़ियों की धरोहर इस धरा को प्रदूषण से बचाने का आज ही प्रण लें।
धन्यवाद
आभार – नवीन पहल – २२.०२.२०२२ 🎉💐🙏🏻🙏🏻
# वार्षिक प्रतियोगिता हेतु
Karan
03-Mar-2022 12:57 PM
Nice
Reply
Arman
02-Mar-2022 05:39 PM
Bahut khoob
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Marium
01-Mar-2022 04:53 PM
Nice
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